Windows 11 Error: ‘This App Has Been Blocked by Your System Administrator’

https://www.thewindowsclub.com/this-app-has-been-blocked-by-your-system-administrator
Local Security Policy [Win+R => secpol.msc]
Security Settings > Application Control Policies > AppLocker > Packaged app Rules > Create new rule
REGEDIT
Computer\HKEY_LOCAL_MACHINE\SOFTWARE\Policies\Microsoft\WindowsStore
RemoveWindowsStore: 0
RequirePrivateStoreOnly: 0
REGEDIT
Computer\HKEY_LOCAL_MACHINE\SOFTWARE\Microsoft\Windows\CurrentVersion\Policies\System
EnableLUA: 0

RSS Management

दश्त-ऐ-तन्हाई

दश्त-ए-तन्हाई मे, ऐ जान-ए-जहां, लरज़ाँ हैं, तेरी आवाज़ के साये, तेरे होंठों के सराब,
दश्त-ए-तन्हाई मे, दुरी के खस-ओ-ख़ाक तले, खिल रहे हैं तेरे पहलु के समन और गुलाब
In the desert of my solitude, my love, quivers the shadows of your voice, the mirage of your lips In the desert of my solitude
from the ashes of distance between us, bloom jasmines & roses of your touch


उठ रही कहीं हैं क़ुर्बत से तेरी सांस की आंच, अपनी खुश्बू मे सुलगती हुई मद्धम मद्धम
दूर उफाक़ पर चमकती हुई क़तरा क़तरा, गिर रही है तेरी दिल दार नज़र की शबनम
From somewhere close by rises the warmth of your breath, smolders in its own perfume gently.
Far away, on the horizon, glistens drop by drop, the dew of your beguiling glance.


इस क़दर प्यार से.. ऐ जान-ए-जहां रक्खा है.. दिल के रुखसार पे इस वक़्त.. तेरी याद ने हाथ
यूँ गुमान होता है.. गरचे है अभी सुबह-ए-फ़िराक.. ढल गया हिज्र का दिन.. आ भी गयी वस्ल कि रात
With such tenderness, my love, your memory has placed its hand on the face of my heart
Even though this is the dawn of our farewell, it feels like the sun has set on our separation and the night of our union is at hand.


~ Faiz Ahmad Faiz

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Quran (2)

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
पहले ही पहल नाम लेता हूँ मनमोहन का जो बड़ी मिया मोह का मेहरवाला है
الٓمٓ
अलिफ़, लाम, मीम।
ذَلِكَ الْكِتَابُ لَا رَيْبَ فِيهِ هُدًى لِّلْمُتَّقِينَ
उस महावेद के परमेश्वर के होने में कोई दुग्धा नहीं वह भक्तों को भली राह पर लगाता है
الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْغَيْبِ وَيُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ
जो अनदेखे धरम लाते हैं और पूजा को संवारते हैं और हमारे दिए का दान भी करते हैं
وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ وَبِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ
“और जो जो तेरे बल उतरा उसको और जो तुझसे पहले उतारा गया
उसको सब जी से मानते हैं और पिछले जुग को भी जी में ठीक जानते हैं “
أُولَئِكَ عَلَى هُدًى مِّن رَّبِّهِمْ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
यही लोग अपने पालन हार की राह पर हैं और यही अपनी उमंग पावनहार हैं
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا سَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ
इसमें कोई दुग्धा नहीं है के मलीछों को कैसा ही डरा दे या न डरा दे वह धरम नहीं लावेंगे
خَتَمَ اللَّهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ وَعَلَى سَمْعِهِمْ وَعَلَى أَبْصَارِهِمْ غِشَاوَةٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ
“मनमोहन ने उनके जी और कानों पर ठप्पा लगा दिया है
और उनके नैनों में मोतिया फिरा हुआ है और उनके लिए भारी मार है

~ शाह फज़ल उर रहमान गंज मुरादाबादी (१२०१-)

Quran (1)

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
पहले ही पहल नाम लेता हूँ मनमोहन का जो बड़ी मिया मोह का मेहरवाला है
الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
सबसे राहत मनमोहन को है जो सारे संसार का पालनहार
الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
बड़ी मिया मोह का मेहरवाला है
مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ
जिसके बस में चिकौती का दिन है
إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ
हम तेरा ही आसरा चाह्ते हैं और तुझी को पूजते हैं
اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ
चला हमको सीधी राह डगमग नहीं
صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ
“उन लोगों की जिनपर तेरी दया हुई न उनकी जिनपर तेरी झुंझुलाहट हुई
और न राह को राहों की और न खोये हुओं की और न राह भटके हुओं की

~ शाह फज़ल उर रहमान गंज मुरादाबादी (१२०१-)

Uk’taaye – Josh Malihabadi

क्या हिन्द का ज़िन्दाँ काँप रहा है गूँज रही हैं तकबीरें

उकताए हैं शायद कुछ क़ैदी और तोड़ रहे हैं ज़ंजीरें

दीवारों के नीचे आ आ कर यूँ जमा हुए हैं जिंदानी

सीनों में तलातुम बिजली का आँखों में झलकती शमशीरें

भूखों की नज़र में बिजली है तोपों के दहाने ठन्डे हैं

तक़दीर के लब पे जुम्बिश है दम तोड़ रही है तदबीरें

आँखों में गदा की सुर्खी है बे-नूर है चेहरा सुलतान का

तखरीब ने पर्चम खोला है सजदे में पड़ी हैं ता’अमीरें

क्या उनको खबर थी सीनों से जो खून चुराया करते थे

इक रोज़ इसी बे-रंगी से झलकेंगी हज़ारों तस्वीरें

क्या उनको खबर थी होंठों पर जो क़ुफ़्ल लगाया करते थे

इक रोज़ इसी खामोशी से टपकेंगी दहकती तक़रीरें

सम्भलो की वो ज़िन्दाँ गूँज उठा झपटो की वो क़ैदी छूट गए

उठो की वो बैठी दीवारें दौड़ो की वो टूटी ज़ंजीरें

ज़िन्दाँ: prison | तकबीरें: slogans | जिंदानी: prisoners | तलातुम: storm | शमशीरें: swords | जुम्बिश: small/slight movement | तदबीरें: solutions | गाडा: poverty | बे-नूर: light-less | तखरीब: destruction | पर्चम: flag | ता’अमीरें: constructions | कुफल: lock | तक़रीरें: speeches

 

Shabbir Hasan Khan “Josh Malihabadi”

5 Dec.1898 | Malihabad U.P India – 22 Feb. 1982 Islamabad Pakistan

Hindi Vowels Practice

  1. Convert UTF font to Unicode
    1. https://kurtidev.profitbusiness.in/Home.aspx
    2. http://wrd.bih.nic.in/font_KtoU.htm
  2. Copy the Unicode text to Notepad++
  3. Remove all vowels
  4. Add space between two letters (regex)
    1. Find (.)
    2. Replace \1

ह म प छ उ न म क त ग ग न क प ज र ब द ध न ग प ए ग

क न क त ल य स ट क र क र प ल क त प ख ट ट ज ए ग

ह म ब ह त ज ल प न व ल म र ज ए ग भ ख प य स

क ह भ ल ह क ट क न ब र क न क क ट र क म द स

स व र ण श ख ल क ब ध न म अ प न ग त उ ड़ न स ब भ ल

ब स स प न म द ख र ह ह त र क प फ न ग प र क झ ल

ऐ स थ अ र म न क उ ड़ त न ल न भ क स म प न

ल ल क र ण स च च ख ल च ग त त र क अ न र क द न

ह त स म ह न क ष त ज स इ न प ख क ह ड़ ह ड़

य त क ष त ज म ल न ब न ज त य त न त स स क ड र

न ड़ न द च ह ट ह न क आ श र य छ न न भ न न क र ड ल

ल क न प ख द ए ह त आ क ल उ ड़ न म व घ न न ड ल